इंदिरा ने देश की एकता के लिए आजीवन धर्म निरपेक्षता के मूल्यों का पालन किया
इंदिरा ने देश की एकता के लिए आजीवन धर्म निरपेक्षता के मूल्यों का पालन किया

रायपुर । पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में देश को साम्प्रदायिक खतरों से दूर रखने की हर संभव कोशिश की। धर्म निरपेक्षता के मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। देश की एकता को साम्प्रदायिक ताकतों से चुनौती मिल रही थी। साम्प्रदायिक ताकतों को बढ़ने से रोकने के लिए ही उन्होंने 1975 में कड़े फैसले लिये, जिसे इमरजेंसी कहा जाता है। यदि श्रीमती गांधी ने उस समय यह कदम न उठाए होते, तो आज 45 साल बाद जो ताकतें सर उठा रही है, वो 1975 में ही सफल हो गई होती। श्रीमती गांधी ने अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और सिद्धांतो से कभी समझौता नहीं किया और इसके चलते ही उनकी शहादत हुई।  यह विचार देशबन्धु कॉलेज दिल्ली में इतिहास विभाग के प्राध्यापक एवं नेशनल मूवमेंट फ्रंट के कन्वेयर डॉ. सौरभ वाजपेयी ने श्रीमती इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व, विचारों और उनके दृष्टिकोण विषय पर साइंस कॉलेज परिसर स्थित ऑडिटोरियम में जनसंपर्क विभाग द्वारा आज आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।

संगोष्ठी में पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री भक्त चरण दास, कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे, स्कूल शिक्षा मंत्री श्री प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया, खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत, उद्योग मंत्री श्री कवासी लखमा, उच्च शिक्षा मंत्री श्री उमेश पटेल, विधायक श्री मोहन मरकाम, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र तिवारी, राज्य खनिज विकास निगम के अध्यक्ष श्री गिरीश देवांगन, पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष श्री शैलेष नितिन त्रिवेदी, महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ किरणमयी नायक, आयुक्त जनसम्पर्क श्री दीपांशु काबरा, सहित अन्य जनप्रतिनिधि, प्रबुद्धजन, साहित्यकार एवं बड़ी संख्या में महाविद्यालयों के विद्यार्थीगण उपस्थित थे।   

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डॉ. वाजपेयी ने 1971 में भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश निर्माण में श्रीमती गांधी की भूमिका और इसके बाद की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रीमती गांधी ने इस दौरान अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं चीन की परवाह न करते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधर रही। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान देश अपने निर्माण के तीस साल के भीतर दो टुकड़े में बट गया, इससे यह सिद्ध होता है कि धर्म, राष्ट्र की बुनियाद नहीं है। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद सभी धर्माें, जातियों और सम्प्रदायों से मिलकर बनने वाला राष्ट्रवाद है। इंदिरा गांधी जैसी राष्ट्रवादी नेता, प्रधानमंत्री, उनके जैसी सूझ-बूझ अपने आप में विरासत है। उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक ताकतों का पुष्टिकरण नहीं बल्कि उनके खिलाफ लड़ना होगा। यह विचार की लड़ाई है, व्यक्ति से नहीं। उन्होंने कहा कि आज यह संकल्प लेने का दिन है कि हम इंदिरा गांधी की शहादत, त्याग की परंपरा का अनुसरण करें।

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संगोष्ठी में पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री भक्त चरण दास ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती और पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के शहादत दिवस पर उन्हें नमन किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के जीवनवृत पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रीमती गांधी ने देश का नेतृत्व ऐसे समय मंें संभाला जब कई कठिन चुनौतियां विद्यमान थी। देश में खाद्यान्न की कमी और गरीबी थी। उन्होंने श्रीमती गांधी के दस और बीस सूत्रीय कार्यक्रम और हरित क्रांति के परिणाम के बारे में विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर, बैंकों का राष्ट्रीकरण, देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाना उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। श्रीमती गांधी ने जिस तरह लोकतांत्रिक गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखा। ऐसा उदाहरण देश में देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में मनोबल को मजबूत रखने की जरूरत है। न्याय को न्याय और अन्याय को अन्याय कह सके और न्याय की स्थापना में अपनी भूमिका अदा करें।  कृषि एवं जल संसाधन मंत्री श्री रविन्द्र चौबे और विधायक श्री मोहन मरकाम ने कहा कि हम सबको सरदार पटेल और श्रीमती इंदिरा गांधी के रास्ते पर चलकर साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़नी है। देश में साम्प्रदायिक ताकतें ताकतवर हो गई है।

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आज इनके खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लेना पड़ेगा। उन्होंने इस मौके पर सरदार पटेल का स्मरण करते हुए कहा कि आज भारत माता का स्वरूप जो हम देख रहे हैं, इसका श्रेय सरदार पटेल को जाता है। उन्होंने रियासतों का विलीनीकरण कर देश का एकीकरण किया। देश में लोकतंत्र की स्थापना में वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम किया।  कार्यक्रम के प्रारंभ में जनसम्पर्क आयुक्त श्री दीपांशु काबरा ने अपने स्वागत उद्बोधन में संगोष्ठी के आयोजन की रूपरेखा के बारे में जानकारी दी और अतिथिगणों का स्वागत किया। आभार प्रदर्शन संचालक जनसम्पर्क ने व्यक्त किया।