रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र में दूसरे दिन धान खरीदी की अव्यवस्था पर जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष द्वारा लाए गए स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा की अनुमति मिलते ही, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सीधे तौर पर मौजूदा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए।
🚨 मुख्य आरोप: ‘निजीकरण की सुनियोजित साजिश’
भूपेश बघेल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि धान खरीदी के मौजूदा हालात देखकर यह स्पष्ट है कि सरकार की नीयत किसानों का पूरा धान खरीदने की नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि धान खरीदी की व्यवस्था को जानबूझकर बिगाड़ा जा रहा है।
बघेल का गंभीर दावा: “यह अव्यवस्था महज़ एक प्रबंधन की गलती नहीं है। ऐसा लगता है कि सरकार सिस्टम को इस हद तक कमजोर कर देना चाहती है, ताकि बाद में इसे निजी हाथों या बड़े व्यापारियों को सौंपने की साजिश सफल हो सके।”
📉 अव्यवस्था के 5 बड़े कारण
पूर्व मुख्यमंत्री ने सदन के सामने कई ठोस उदाहरण रखे, जो उनकी साजिश की थ्योरी को बल देते हैं:
- कर्मचारी हड़ताल और कार्रवाई: धान खरीदी से जुड़ी समितियों के प्रबंधक, कर्मचारी और कंप्यूटर ऑपरेटर अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। सरकार उनकी मांगों पर विचार करने के बजाय कार्रवाई कर रही है और उन्हें जेल भेजने की तैयारी कर रही है।
- पंजीयन में गंभीर खामी: कई पात्र किसानों, विशेष रूप से वन अधिकार पट्टा धारकों का पंजीयन तक नहीं हो पाया है, जिससे वे धान बेचने से वंचित हैं।
- ऑनलाइन टोकन सिस्टम फेल: ऑनलाइन टोकन की व्यवस्था पूरी तरह से ठप पड़ी है। कई किसानों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें एक टोकन के लिए भी बार-बार चॉइस सेंटर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
- उठाव (Lifting) में देरी: खरीदी केंद्रों से धान का सीधे मिलिंग के लिए उठाव नहीं हो रहा है। पहले इसे संग्रहण केंद्रों तक ले जाया जा रहा है और आरओ (Release Order) काटने के लिए फरवरी तक का समय दिया जा रहा है।
- पिछला बकाया और किसान संकट: बघेल ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है, इसके बावजूद पिछले साल की धान खरीदी का उठाव भी पूरा नहीं हो पाया है। महासमुंद के किसान मनबोध द्वारा आत्महत्या के प्रयास जैसी गंभीर घटना के बाद भी सरकार में कोई संवेदनशीलता नहीं दिखी।
🗣️ निष्कर्ष: विस्तृत चर्चा की मांग
भूपेश बघेल ने आसंदी से मांग की कि धान खरीदी के इस बेहद संवेदनशील और गंभीर मामले पर विस्तृत चर्चा कराई जाए। उन्होंने कहा कि अगर विधिवत चर्चा होती है, तो सत्ता पक्ष के सदस्यों को भी स्थिति स्पष्ट करने और सरकार को जवाब देने का अवसर मिलता। विपक्ष का स्पष्ट रुख है कि मौजूदा अव्यवस्थाएँ राज्य के अन्नदाताओं को सीधे तौर पर प्रभावित कर रही हैं और इनकी उच्च स्तरीय जांच ज़रूरी है।










