मानसून की बौछारों के साथ ही छत्तीसगढ़ के जंगलों में एक अनोखी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है – पिहरी, एक ऐसा जंगली मशरूम जो स्वाद और कीमत दोनों में अपनी अलग पहचान रखता है। मनेन्द्रगढ़ के बाजारों में इन दिनों इस ‘धरती के फूल‘ की बहार है। यह मशरूम, जो बांस के पेड़ों के आसपास उगता है, अपनी अनोखी खुशबू और स्वाद से लोगों के दिलों में बस गया है।
पनीर से भी महंगा!
सोचिए, एक ऐसा मशरूम जिसकी कीमत 800 से 1200 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गई है! जी हाँ, यह सच है। पिहरी की कीमत न केवल पनीर से ज़्यादा है बल्कि काजू के बराबर भी है। फिर भी, इसकी मांग में कोई कमी नहीं आ रही है। लोग इसे खाने के लिए इसकी ऊँची कीमत चुकाने को तैयार हैं। यह स्वाद की बात नहीं है, बल्कि इसके पौष्टिक तत्वों का भी असर है।
आदिवासी समुदाय का योगदान
इस मशरूम की खेती नहीं होती। यह प्रकृति का अनमोल तोहफा है जो जंगलों में अपने आप उगता है। आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों में जाकर इसे इकट्ठा करते हैं और फिर बाजारों में बेचते हैं। यह उनके लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पिहरी में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और कई खनिज लवण पाए जाते हैं, जो इसे स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद बनाते हैं। यह पुटु से थोड़ा अलग होता है, और अपने अनोखे स्वाद के लिए जाना जाता है।
एक अनोखा अनुभव
मुझे याद है, बचपन में मेरे दादा-दादी भी बारिश के मौसम में जंगल से पिहरी लाते थे। उनका बनाया हुआ पिहरी का सब्जी आज भी मेरे ज़हन में ताज़ा है। यह एक ऐसा अनुभव है जो शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। इसलिए, अगर आपको कभी मौका मिले, तो ज़रूर पिहरी का स्वाद चखें, लेकिन याद रखें, इसे संयम से खाएँ।