बस्तर दशहरे की काछनगादी पूजा आज, 22 पीढ़ियों से बना रहे कांटों का झूला
बस्तर दशहरे की काछनगादी पूजा आज, 22 पीढ़ियों से बना रहे कांटों का झूला

जगदलपुर । ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के लिए काछनगादी विधान सबसे अहम माना जाता है। इसके पीछे का कारण ये है कि इस रस्म में काछन देवी कांटों के झूले में लेटकर बस्तर के राजपरिवार को दशहरा पर्व मनाने की अनुमति देती हैं। माना जाता है कि देवी की अनुमति के बाद ही बस्तर दशहरा पर्व मनाया जाता है। इस महत्वपूर्ण विधान को संपन्न करने के पीछे शहर से लगे लामनी गांव के स्कूलपारा के रहने वाले नेताम परिवार का सबसे बड़ा योगदान होता है।

ये नेताम परिवार बीते 22 पीढ़ियों से काछन देवी के लिए कांटों का झूला तैयार करता है, लेकिन विडंबना ये है कि इसके एवज में नेताम परिवार को महज दो किलो चावल और एक धोती-गमछा ही दिया जाता है। इसके अलावा इस परिवार को दूसरी कोई भी सुविधा नहीं मिलती। ये दो किलो चावल भी दशहरा के आखिर में परिवार को मिलता है। नेताम परिवार की परंपरा का निर्वाह कर रहे जगतराम ने बताया कि पहले जब राजा रथ पर आरूढ़ होते थे, तब उनके परिवार को दो किलो चावल, एक धोती के साथ कपड़े और एक बकरा सहित कई सुविधाएं दी जाती थीं। जगतराम बताते हैं कि वे पूर्वजों के जमाने से काछन देवी के लिए झूला बना रहे हैं। इसके लिए वे काछनगादी पूजा विधान से करीब पखवाड़ेभर पहले से तैयारियां शुरू कर देते हैं। जंगल में जाकर वे बेल के कांटों वाली टहनियां व लकड़ी लेकर आते हैं और इसे सुखाते हैं।

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