डॉ. अंकुश देवांगन: कला के उस पार, एक अनोखी यात्रा
डॉ. अंकुश देवांगन: कला के उस पार, एक अनोखी यात्रा

डॉ. अंकुश देवांगन: कला के उस पार, एक अनोखी यात्रा

छत्तीसगढ़ के मशहूर मूर्तिकार डॉ. अंकुश देवांगन का नाम आज कला जगत में एक जाना-माना नाम है। उनकी प्रतिभा की गहराई और विविधता देखकर हैरानी होती है – चाहे वो दुनिया की सबसे बड़ी लोहारथ प्रतिमा हो या फिर दुनिया की सबसे छोटी मूर्तियाँ, डॉ. देवांगन ने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है।

छोटी से लेकर विशाल तक, कला का अद्भुत खेल

भिलाई में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की नयनाभिराम प्रतिमा का निर्माण करके उन्होंने एक बार फिर अपनी कला का लोहा मनवाया है। महाराष्ट्र स्नेह मंडल नेहरू नगर भिलाई द्वारा इस प्रतिमा को स्मृति नगर के बाल गंगाधर तिलक उद्यान में स्थापित किया जा रहा है। यह प्रतिमा केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि कला की उस अद्भुत यात्रा का प्रतीक है जिसमे सूक्ष्म से लेकर विशाल तक, हर आकार ने डॉ. देवांगन की प्रतिभा को निखारा है।

सोचिए, एक कलाकार जो दुनिया की सबसे बड़ी लोहारथ प्रतिमा (दल्ली राजहरा) और दुनिया के सबसे लंबे भित्तिचित्र (पुरखौती मुक्तागन, रायपुर) जैसी विशाल कृतियों का निर्माण कर सकता है, वहीँ दुनिया की सबसे छोटी मूर्तियों को भी इतनी बारीकी से गढ़ सकता है कि वो सरसों के दाने से भी बीस गुना छोटी हो! इस अद्भुत विविधता के लिए उन्हें लिम्का और गोल्डन बुक ऑफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी सबसे छोटी गणेश प्रतिमा तो लंदन के गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स कार्यालय में सुरक्षित रखी गई है!

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कला से परे, समाज सेवा का भाव

डॉ. देवांगन की कला केवल मूर्तियों तक सीमित नहीं है। उनकी कृतियाँ भिलाई के सिविक सेंटर से लेकर हरियाणा के सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेला, राजभवन भोपाल, और दुर्गापुर स्टील प्लांट तक फैली हुई हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जहाँ-जहाँ उन्होंने अपनी कला का जादू बिखेरा है, वो स्थान पर्यटन स्थलों में तब्दील हो गए हैं। यह उनकी कला की अद्भुत शक्ति का प्रमाण है।

इसके अलावा, लगभग 37 वर्षों से वे छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कला प्रदर्शनियां और प्रशिक्षण दे रहे हैं, ताकि वहां के बच्चे हिंसा से दूर रहकर रचनात्मक बन सकें। यह उनके सामाजिक उत्तरदायित्व का एक उदाहरण है। भारत सरकार के केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने भी उनकी कला साधना को पहचाना है और उन्हें स्वस्फूर्त ललित कला अकादमी का सदस्य बनाया है, जहाँ वे छत्तीसगढ़ से प्रथम कार्यकारी बोर्ड सदस्य हैं।

डॉ. अंकुश देवांगन की कला यात्रा एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाती है कि कैसे छोटी शुरुआत से विशाल सफलता प्राप्त की जा सकती है। उनकी कला केवल मूर्तियाँ नहीं, बल्कि एक कहानी है जो भावनाओं से ओतप्रोत है और सृजनशीलता की अनंत संभावनाओं को दर्शाती है।

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