छत्तीसगढ़ के वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है। राज्य सरकार ने गुरुघासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को आधिकारिक तौर पर अधिसूचित कर दिया है, जो अब भारत का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व बन गया है। यह घोषणा न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
2,829.387 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्रफल में फैला यह टाइगर रिजर्व, आंध्र प्रदेश के नागार्जुनसागर श्रीसैलम (3,296.31 वर्ग किमी) और असम के मानस टाइगर रिजर्व (2,837.1 वर्ग किमी) के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य है। इस नए रिजर्व के साथ, छत्तीसगढ़ में अब कुल चार टाइगर रिजर्व हो गए हैं, जो राज्य की जैव विविधता और पारिस्थितिक महत्व को रेखांकित करता है।
गुरुघासीदास नेशनल पार्क और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य को मिलाकर बनाए गए इस नए टाइगर रिजर्व का इतिहास काफी रोचक रहा है। वर्ष 2021 में इसे टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन विभिन्न कारणों से यह योजना अटक गई थी। इस क्षेत्र में मौजूद कोयला खदानें, तेल के कुएं और मीथेन गैस भंडार इसके मुख्य कारण थे।
राज्य में सरकार बदलने के साथ ही इस महत्वपूर्ण परियोजना को नई गति मिली। भाजपा सरकार ने मंत्रिपरिषद की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिससे यह सपना साकार हो सका। यह निर्णय न केवल बाघों के संरक्षण के लिए, बल्कि समग्र पारिस्थितिक संतुलन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस नए टाइगर रिजर्व से कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे:
- बाघ संरक्षण: यह क्षेत्र बाघों को एक सुरक्षित और विस्तृत प्राकृतिक आवास प्रदान करेगा, जिससे उनकी संख्या में वृद्धि की उम्मीद है।
- पारिस्थितिक संतुलन: बाघों के साथ-साथ अन्य वन्यजीवों और वनस्पतियों का भी संरक्षण होगा, जो पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
- पर्यटन को बढ़ावा: इको-टूरिज्म के माध्यम से क्षेत्र में पर्यटन को नया आयाम मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
- रोजगार सृजन: स्थानीय समुदायों के लिए गाइड, वाहन चालक, रिसॉर्ट कर्मचारी जैसे नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
- अतिरिक्त संसाधन: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से मिलने वाला अतिरिक्त बजट क्षेत्र के विकास में सहायक होगा।
इस नए टाइगर रिजर्व की स्थापना छत्तीसगढ़ के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह न केवल राज्य की प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने में मदद करेगा, बल्कि देश के समग्र पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा। आने वाले समय में, यह क्षेत्र न केवल बाघों का एक सुरक्षित घर बनेगा, बल्कि पर्यावरण अध्ययन और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र भी बन सकता है।