टूटी सड़कों से जूझते ग्रामीण: जनप्रतिनिधियों के वादे हुए फीके
टूटी सड़कों से जूझते ग्रामीण: जनप्रतिनिधियों के वादे हुए फीके

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले में स्थित छुईखदान ब्लॉक के जोम गाँव के निवासियों ने एक बार फिर अपनी आवाज़ बुलंद की है। आज, वे जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ जिला मुख्यालय पहुंचे, जहाँ उन्होंने अपनी जर्जर सड़कों की मरम्मत की मांग रखी। यह कहानी केवल टूटी सड़कों की नहीं, बल्कि टूटे हुए वादों और धूमिल होती विश्वसनीयता की भी है।

विधानसभा चुनाव के दौरान, जोम गाँव के निवासियों ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया था। उन्होंने न केवल चुनाव का बहिष्कार किया, बल्कि राजनीतिक दलों के गाँव में प्रवेश पर भी रोक लगा दी थी। उनका संदेश स्पष्ट था – “गाँव में सड़क नहीं, तो वोट नहीं“। यह नारा गाँव भर में लगे बैनरों और पोस्टरों पर दिखाई दे रहा था।

टूटी सड़कों से जूझते ग्रामीण: जनप्रतिनिधियों के वादे हुए फीके
टूटी सड़कों से जूझते ग्रामीण: जनप्रतिनिधियों के वादे हुए फीके

इस दृढ़ संकल्प के सामने, कांग्रेस की विधायक और भाजपा के सांसद दोनों ने चुनाव के बाद सड़क निर्माण का वादा किया था। चुनाव बीत गया, और संयोग से, वादा करने वाले दोनों नेता – भाजपा सांसद संतोष पांडे और कांग्रेस विधायक यशोदा वर्मा – फिर से जीतकर आए। लेकिन जोम और ओटेबंद की सड़कें? वे पहले से भी बदतर हो गई हैं।

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आज, ये सड़कें कीचड़ और गड्ढों से भरी हुई हैं। स्कूली बच्चों के लिए, यह मार्ग एक दैनिक चुनौती बन गया है। कई बच्चे जो बुंदेली और परपोड़ी के स्कूलों में पढ़ते हैं, उन्हें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्कूल बस, जो आदर्श रूप से गाँव तक आनी चाहिए, अब केवल तेंदुभांठा और बुंदेली के बीच महावीर चौक तक ही पहुंच पाती है। इसका मतलब है कि बच्चों और उनके माता-पिता को गाँव से दो किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, वो भी पैदल।

ग्रामीणों ने अपनी मांग को लेकर हर संभव दरवाजा खटखटाया है – पीडब्ल्यूडी, कलेक्टर, विधायक, सांसद, मंत्री – लेकिन परिणाम शून्य रहा है। आज, एक बार फिर, वे कलेक्टर कार्यालय पहुंचे। इस बार, एडीएम प्रेम कुमार पटेल ने त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।

लेकिन सवाल यह है: क्या यह आश्वासन भी पिछले वादों की तरह धूल में मिल जाएगा? या फिर, क्या जोम गाँव के निवासी अंततः अपने अधिकारों और एक बेहतर जीवन की गुणवत्ता के लिए विजयी होंगे? यह कहानी न केवल एक टूटी सड़क की है, बल्कि एक टूटे सिस्टम की भी है, जहाँ वादे आसानी से किए जाते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करना उतना ही मुश्किल होता है। जैसे-जैसे जोम गाँव के लोग अपने संघर्ष में डटे रहते हैं, वे हमें याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र में, आवाज़ उठाना और अपने अधिकारों के लिए लड़ना कितना महत्वपूर्ण है।

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