रायपुर : कुपोषण मुक्ति के लिए बच्चों के स्वास्थ्य के साथ स्वाद का भी ख्याल
रायपुर : कुपोषण मुक्ति के लिए बच्चों के स्वास्थ्य के साथ स्वाद का भी ख्याल

कोदो की खिचड़ी, रागी का हलवा, मूंगफली की चिक्की और स्थानीय फल-सब्जियों से बन रही सेहत

बच्चों का भोजन पौष्टिक होने के साथ रूचिकर और स्वादिष्ट भी होना चाहिए। इससे बच्चे अच्छी तरह भोजन करते हैं और उन्हें खाने के प्रति अरूचि नहीं होती। बच्चों के खान-पान संबंधित व्यवहार और उनकी रूचि को ध्यान में रखते हुए आंगनबाड़ियों में स्थानीय पौष्टिक आहार को बच्चों के स्वाद के अनुसार बनाकर उन्हें खिलाया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर इसके बारे में महिला एवं बाल विकास विभाग की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और पोषण दूत शिशुवती माताओं को भी जागरूक कर रही हैं। स्थानीय रागी, कोदो, दलिया, मूंगफली, गुड़ से अलग-अलग प्रकार के बने व्यंजन अब बच्चे चाव से खाने लगे हैं। इससे बच्चों को सभी पोषक आहार मिलने के साथ उनकी खाने के प्रति रूचि भी बढ़ने लगी हैं। इसका सकारात्मक असर भी दिखाई देने लगा है। उत्तर बस्तर कांकेर जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या में 78 प्रतिशत की कमी आई है और लगभग 7 हजार 22 बच्चे कुपोषण से बाहर आ गए हैं।   

आगंनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिकाएं और सुपोषण दूत लगातार बच्चों के पोषण स्तर  को बनाए रखने और लोगों को सुपोषण के प्रति जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं। इससे माताएं अपने बच्चों को आवश्यक मात्रा में पौष्टिक आहार देने लगी हैं।

इसके प्रभाव से जिले के ग्राम पंचायत मनकेशरी की श्रीमती सुमन देवांगन की डेढ़ साल की बच्ची कुमारी धानी देवांगन पौष्टिक आहार लेकर अब पूरी तरह स्वस्थ हो गई है। नन्हीं धानी आंगनबाड़ी सहायिकाओं और सुपोषण दूतों द्वारा तैयार कोदो की खिचड़ी और रागी का हलवा बड़े चाव से खाती है।

श्रीमती सुमन ने बताया कि 18 मार्च 2020 को जिला अस्पताल में धानी का जन्म हुआ। जन्म के समय उनकी बच्ची धानी का वजन 2 किलो 200 ग्राम होने के कारण वह कुपोषण की श्रेणी में आ गई थी। धानी का कुपोषण दूर करने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सुपोषण दूतों ने खूब मेहनत की। धानी की खाने में ज्यादा रूचि नहीं थी इसे देखते हुए उन्होंने बच्ची की रूचि के अनुसार प्रतिदिन शाम को पौष्टिक कोदो की खिचड़ी और रागी का हलवा घर आकर अपने सामने खिलाया और परिवार को स्वच्छता संबंधी जानकारी दी। धानी की मां ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने घर की बाड़ी में उगाए जाने वाली सब्जियों, फलों के साथ स्थानीय अनाज के बारे में बताया जिससे धानी का कुपोषण दूर किया जा सके। उन्होंने खुश होते हुए कहा कि एक वर्ष पांच माह पूर्ण करने के पश्चात धानी का वजन आठ किलो चार सौ ग्राम तक बढ़ गया है। अब वह पूरी तरह स्वस्थ है और  सामान्य श्रेणी में आ गई है।