रायपुर के विवेकानंद नगर स्थित श्री संभवनाथ जैन मंदिर में चल रहे आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 के प्रवचनमाला में गुरु तत्व पर प्रकाश डालते हुए मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने कहा कि गुरु तत्व तीन पदों में बंटा है: आचार्य पद, उपाध्यय पद और साधु पद।
मुनिश्री ने आचार्य भगवंत के गुणों का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने बताया कि आचार्य भगवंत आठ संपदा के मालिक होते हैं। उनका मन समुद्र की तरह विशाल होता है, जैसे गंगा नदी का पानी आता है और जाता है, वैसे ही आचार्य भगवंत ज्ञान अर्जित करते हैं और उसे सभी को बांटते हैं।
मुनिश्री ने आगे कहा कि आचार्य भगवंत लवण समुद्र के जैसे होते हैं, जहां पानी अलग-अलग जगह से आकर समाहित होता है, वैसे ही आचार्य भगवंत में गंभीरता का गुण होता है। उनका जीवन समुद्र के जैसा होता है, जो कुछ भी उनके अंदर जाता है, वही समाहित हो जाता है, बाहर नहीं निकलता।
उन्होंने बताया कि आचार्य भगवंत दूसरों की आलोचना या प्रायश्चित सुनने के बाद उसे अपने अंदर ही समाहित कर लेते हैं, पद्मधरा के जैसे होते हैं। वे किसी का चलाया हुआ उन्मार्ग आगे नहीं बढ़ाते और अपने से कोई उन्मार्ग नहीं चलाते। ऐसा कोई आचरण नहीं करते जिससे किसी के जीवन में अधर्म की प्राप्ति हो।
मुनिश्री ने बताया कि आचार्य भगवंत श्रुत संपन्न होते हैं, अमोघ वचन वाले होते हैं, वाचना संपन्न होते हैं और शिष्य संपदा के धनी होते हैं।