छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में स्थित रेवेन्द्र सिंह वर्मा कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया ने हाल ही में गोंद उत्पादन तकनीक पर एक दिवसीय प्रशिक्षण सह प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में गोंद के महत्व और इसके उत्पादन की विभिन्न विधियों पर प्रकाश डाला गया।
गोंद के महत्व पर प्रकाश डाला गया
कार्यक्रम का उद्घाटन महाविद्यालय के अधिष्ठाता, डॉ. संदीप भंडारकर ने किया। उन्होंने विद्यार्थियों को गोंद के महत्व और इसके विभिन्न उपयोगों के बारे में विस्तार से बताया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के प्राकृतिक रॉल एवं गोंद का संग्रहण, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन पर नेटवर्क परियोजना की प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. प्रतिभा कटियार ने गोंद के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कैसे गोंद को हार्वेस्ट किया जाता है, इसे सुरक्षित तरीके से कैसे प्रसंस्करण किया जाता है और इसके महत्व और बायोपॉलीमर के मांग में बढ़ोत्तरी को समझाया।
जंगली पौधे से वहां रहने वाले लोगों की आय कैसे बढ़ाए?
कार्यक्रम में डॉ. पी.एस. पिसलकर ने कृषि उत्पादों के पोस्ट हार्वेस्ट तकनीक के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने गोंद के साथ-साथ अन्य जंगली पौधों से प्राप्त रेजिन के महत्व और इनके उपयोग के बारे में भी बताया। उन्होंने जंगली पौधों से रेजिन और गोंद के व्यावसायिक उपयोग और इसके जरिए वहां रहने वाले लोगों की आय बढ़ाने के तरीकों को समझाया।
गोंद निकालने की विभिन्न विधियों का प्रदर्शन
इस कार्यक्रम में डॉ. मनेन्द्र कुमार ने गोंद निकालने के तरीकों का प्रदर्शन किया। उन्होंने व्यावहारिक रूप से बताया कि कैसे गोंद को पौधों से अलग किया जाता है। डॉ. नूतन सिंह ने पौधों से गोंद निकालने के विभिन्न यांत्रिक विधियों के बारे में बताया। कार्यक्रम में डॉ. टी.डी. साहू, डॉ. यू. के. धु्रव, डॉ. असित कुमार, कुंती बंजारे, डॉ. हेमलता निराला, डॉ. साक्षी बजाज, डॉ. सरिता शर्मा, सुनिता सिंह, महाविद्यालय के समस्त कर्मचारी गण तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
यह कार्यक्रम गोंद उत्पादन के क्षेत्र में नए ज्ञान और कौशल को बढ़ावा देने और किसानों की आय में वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।