छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पति-पत्नी के बीच विवाद ने एक मासूम बच्चे को कटघरे में खड़ा कर दिया है। पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बच्चे के डीएनए टेस्ट की मांग की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी है।
विवाद की कहानी
- दुर्ग में रहने वाले एक युवक की शादी बालोद में रहने वाली युवती के साथ दो साल पहले दल्ली राजहरा में हुई थी।
- उनके चार माह का बेटा है।
- दोनों में विवाद शुरू हो गया और मामला कोर्ट पहुँच गया।
फैमिली कोर्ट का निर्णय
- पति ने फैमिली कोर्ट में मामला दायर करते हुए चार महीने के मासूम के रिश्ते पर सवाल उठाते हुए डीएनए टेस्ट की मांग की।
- फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज करते हुए युवक को हिदायत दी कि बच्चे का लालन पालन एक पिता की तरह करें, और घर परिवार के बीच सामंजस्य बनाए रखें।
हाई कोर्ट का निर्णय
- फैमिली कोर्ट के फैसले को युवक ने हाई कोर्ट में चुनौती दी और चार महीने के मासूम का डीएनए टेस्ट करवाने की मांग की।
- हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
- कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ठोस प्रकरण नहीं होने पर हिन्दू रीति रिवाज से हुए विवाह के दौरान जन्म लिए बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता।
- डीएनए टेस्ट का आदेश तभी दिया जाना चाहिए जब साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत पर्याप्त सबूत हों।
मासूम पर प्रभाव
यह घटना मासूम बच्चे पर भावनात्मक और मानसिक रूप से बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकती है। मासूम के डीएनए टेस्ट की मांग गंभीर और अनुचित है।