गौ संवर्धन और संरक्षण छत्तीसगढ़ की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा
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कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने रायपुर स्थित महावीर गौशाला के गोपाष्टमी में सम्मिलित हुए. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री ने कहा की गौ पालन और उसका संरक्षण व् संवर्धन हमारे प्रदेश की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. छत्तीसगढ़ प्रदेश के गांवों में गौ से आधारित आर्थिक व्यवस्था बहुत पुरानी है.

कृषि मंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति में पशुधन का विशेष महत्व है. गौठान हमारी समृद्ध और सांस्कृतिक परंपरा का अंग है. गौधन संरक्षण व संवर्धन छत्तीसगढ़ शासन की महत्वपूर्ण प्राथमिकता हैं. सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में पशुधन संरक्षण एवं संवर्धन हेतु गौठानों का निर्माण किया जा रहा है. गौठानों को आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में भी विकसित किया जा रहा है. इन केन्द्रों में बायो गैस, जैविक खाद और गोबर से अगरबत्ती, धूप, गोबर के दिये, गमलें व अन्य विविध सामग्रियों के निर्माण के लिए महिला समूहों को भी जोड़ा जा रहा है.

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रविन्द्र चौबे ने कहा कि शासन द्वारा गौठान को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने का कार्य किया जा रहा है. पशुधन विकास विभाग के अधिकारियों को नियमित रूप से गौशालाओं के निरीक्षण एवं आवश्यक मदद प्रदान करने के निर्देश दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि जिन गौशालाओं में सुव्यवस्थित रूप से पूरी निष्ठा के साथ गौ संरक्षण का कार्य किया जा रहा है, वहां शासन द्वारा सभी संभव मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि गौशालाओं में गौसेवा के महत्वपूर्ण कार्य के निर्वहन में लापरवाही बरतना पाए जाने पर संबंधितों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए हैं.

कृषि मंत्री ने कहा हजार गौठानों का निर्माण किया गया है, जहां पशुधन संरक्षण एवं संवर्धन हेतु विभिन्न गतिविधियां संचालित की जा रही है. गौठानों में पशुधन के लिए चारा व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था, सोलर पंप, फेंसिंग/सीपीटी, वृक्षारोपण आदि कार्य किए जा रहे है. साथ ही पशुओं से प्राप्त होने वाले गोबर के प्रबंधन हेतु वर्मी टांका, नाडेप टांका, बायोगैस संयंत्र आदि का भी निर्माण किया जा रहा है. गौठान संचालन हेतु महिला स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

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        गौधन संरक्षण में सफल होने के लिए समाज के सभी वर्गाें का सक्रिय सहयोग व भागीदारी आवश्यक है. उन्होंने कहा कि गौधन संरक्षण से कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा मिलता है. उन्होंने ग्राम बनचरौदा के गौठान का उदाहरण देते हुए कहा कि बनचरौदा में महिला स्व सहायता समूह द्वारा गोबर से दीये व गमलों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे उनको आर्थिक लाभ होने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का कार्य भी हो रहा है.

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