स्वदेशी राखियों से जगमगाएगा गरियाबंद का रक्षाबंधन!
स्वदेशी राखियों से जगमगाएगा गरियाबंद का रक्षाबंधन!

गरियाबंद (छत्तीसगढ़): इस साल गरियाबंद जिले में रक्षाबंधन का त्यौहार कुछ खास रंग लेकर आ रहा है। यहाँ की बहनें अपने भाइयों की कलाई पर स्वदेशी राखियां सजाने की तैयारी में जुटी हैं। राष्ट्रीय आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़ी महिलाओं ने रेशम, अनाज और स्थानीय सामग्री से 50,000 से भी ज्यादा मनमोहक राखियां तैयार की हैं जो देखते ही बनती हैं!

अनाज के दानों से रची जा रही है कलाकृतियाँ!

बिहान से जुड़ी महिलाएं बड़े ही जुनून और लगन से अपने भाइयों के लिए राखियां बना रही हैं। इस बार ये बहनें चीनी राखियों को नकार, स्वदेशी राखियों को अपना रही हैं। खास बात यह है कि इन राखियों को बनाने में चावल, दाल, गेंहू, धान, ऊन, खीरे के बीज, बांस, कलावा और रेशम जैसे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री का उपयोग किया जा रहा है। बिहान के अधिकारियों ने इस नेक पहल में महिलाओं को आर्थिक सहायता भी प्रदान की है।

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ग्रामीण महिलाओं के लिए स्वावलंबन का नया रास्ता!

कुरूद, चरौदा, रक्सा, गुरुजीभाठा, तर्रा, मदनपुर, जोबा, धवलपुर, कोचबाय जैसे 10 से भी अधिक गांवों की महिला समूह इस अनूठी पहल में शामिल हैं। स्वदेशी को अपनाने के साथ-साथ बिहान का यह प्रयास ग्रामीण महिलाओं के लिए स्वावलंबन का एक नया रास्ता खोल रहा है।

सस्ती और सुंदर राखियों की धूम!

इन स्वदेशी राखियों की कीमत मात्र 10 रुपये से शुरू होकर 50 रुपये तक है, जो बाजार में मिलने वाली महंगी राखियों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। लोग इन आकर्षक और सस्ती राखियों को हाथों-हाथ खरीद रहे हैं। अगर प्रशासन का सहयोग इसी तरह मिलता रहा तो आने वाले समय में ये अनाज से बनी स्वदेशी राखियां बाजार में बिक रही महंगी राखियों को पीछे छोड़ सकती हैं।

स्वदेशी अपनाओ, देश को आगे बढ़ाओ!

बिहान की बहनों द्वारा की गई यह पहल न सिर्फ़ आत्मनिर्भर भारत की ओर एक कदम है बल्कि रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार को भी और अधिक सार्थक बना रही है।

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